एलोपैथिक दवाओं के साइड इफेक्ट्स से हम सभी परिचित हैं और होम्योपैथिक दवाएं यदि फायदा न दें तो हानि भी नहीं पहुंचती हम जानते हैं| 
लेकिन होम्योपैथिक दवाओं के बारे में एक गलत धारणा यह भी है कि होम्योपैथिक दवाएं धीमी गति से फायदा करती हैं जबकि अंग्रेजी दवाएं जल्दी काम कर देती हैं| लेकिन एक बीमारी का ठीक होना और दूसरी फ्री में पाना एक महंगा सौदा है इसलिए साईड इफेक्ट्स की कहानी समझना जरुरी है जिसके लिए हमें किसी भी बीमारी का क्या, क्यों और कैसे समझ लेना चाहिए| 

बीमारी है क्या, हम क्यों बीमार पड़ते हैं  इस बात को समझना कोई बहुत गंभीर विषय नहीं है और बीमारी का कारण समझ लेने पर उसका समाधान स्वतः समझ आ जाता है| यदि हम ध्यान दें कि कोई  भी विचार प्रक्रिया अथवा भाव दशा शरीर में एक क्रिया, एक हलचल उत्पन्न करती है जोकि विचार के स्तर से आरम्भ होकर मस्तिष्क के तंतुओं एवं ग्रंथियों से होती हुई विभिन्न अंगों तक पहुंचती है| उदाहरण के लिए हिंसा की भावना से उपजा विचार मस्तिष्क से ग्रंथियों में पहुंचकर हिंसा का रसायन उत्पन्न करेगा जो व्यक्ति को हिंसा करने के लिए अपने हाथ पैरों का उपयोग करके लड़ने या भागने के लिए प्रेरित करेगा और  हिंसा की ऊर्जा अपने उदगम से निकलकर अपने गंतव्य पर पहुँच कर शांत हो जाएगी| लेकिन कल्पना करें अथवा ध्यान दें कि यदि यह हिंसा की भावना से उपजा विचार निकल न पाए , प्रदर्शित न हो पाए, अंदर ही अंदर रुक जाये  तो क्या होगा?
जीवन ऊर्जा प्रवाह है जिसका बाधित होना ही बीमारी है यदि कोई व्यक्ति किसी बड़ी हानि का सामना करता है और दुःख में डूबा है, यह भाव भी उसी प्रकार मस्तिष्क एवं ग्रंथियों से होता हुआ अपनी यात्रा पर निकलेगा और अपने लक्ष्य पर पहुँच कर प्रदर्शित होगा| संभव है व्यक्ति को कुछ आंसुओं का नुकसान उठाना पड़े और बात समाप्त हो जाये या वह अपने दुःख  प्रदर्शन को रोक ले| जिस तरह बच्चे बहुत सरलता से अपनी भावनाओं को प्रदर्शित कर पाते हैं लेकिन बड़े होने पर ऐसा नहीं होता हम जानते हैं| क्रोध, दुःख, ईर्ष्या, भय इत्यादि भाव पैदा होने के बाद यदि मानसिक प्रक्रिया से गुज़रकर अपने अंतिम लक्ष्य तक नहीं पहुँचते यानि हज़म नहीं होते तो कहीं न कहीं अपनी रासायनिक प्रक्रिया चलाते रहते होंगे यह बात हम समझ सकते हैं| 
भावनाओं के लक्षित अंग में इसी रासायनिक प्रक्रिया के चलते उस अंग की कार्य प्रणाली बदल जाती है, विकृत हो जाती है और किसी बीमारी के रूप में नज़र आती है जैसे; माइग्रेन, ब्लड प्रेशर, एसिडिटी, एलर्जी  इत्यादि| यानि जिस तरह नदी में पानी का प्रवाह, पेट में भोजन का प्रवाह और वातावरण में वायु एवं सूर्य की रौशनी का प्रवाह आवश्यक है उसी प्रकार स्वस्थ रहने के लिए भावनाओं का स्वतंत्र प्रवाह, उनकी स्वतंत्र अभिव्यक्ति आवश्यक है| 
अब इस जीवन ऊर्जा का प्रवाह बाधित होने और परिणाम स्वरुप अंगों की विकृत रासायनिक प्रक्रिया से उपजी बीमारी को क्या इस रासायनिक प्रक्रिया के स्तर पर दूसरे रसायनों से दूर किया जा सकता है या फिर भावनाओं के स्तर पर ही काम करना होगा?